फिल्म समीक्षा: फिल्म ' मैदान ' और ' बड़े मियां,छोटे मियां ' देखनीय है या झेलनीय..पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार डाॅ. प्रकाश हिंदुस्तानी की फिल्म समीक्षा

फिल्म समीक्षा: फिल्म ' मैदान ' और ' बड़े मियां,छोटे मियां ' देखनीय है या झेलनीय..पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार डाॅ. प्रकाश हिंदुस्तानी की फिल्म समीक्षा

फिल्म समीक्षा :  'मैदान' और 'बड़े मियां छोटे मियां'

डॉ. प्रकाश हिंदुस्तानी ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )

' मैदान '  सचमुच बहुत लंबा है। 3 घंटे से भी ज्यादा!! 
दर्शक थक जाता है। नतीजा उबासी और जम्हाई! शोर में सो नहीं सकते, इसलिए मोबाइल चार्ज और ईयर फोन लेकर ही जाएं, कम से कम रील्स तो देख पाएंगे। वैसे फ़िल्म अच्छी है। कई कारणों से देखनीय। अजय देवगन इसमें बेहतरीन हैं। 

अली अब्बास जफर ने हॉलीवुड की तर्ज़ पर 3D फ़िल्म बनाई है। कॉमेडी और एक्शन मिलाकर बड़े मियां, छोटे मियां का उत्पादन किया गया है, जिसमें देशप्रेम की टॉपिंग्स है! इसमें टेक्नोलॉजी हीरो है, मानुषी छिल्लर, सोनाक्षी सिन्हा और अलाया एफ साइड हीरोइनें हैं और अक्षय कुमार, टाइगर श्रॉफ, रोनित रॉय फिलर्स की तरह हैं। निर्देशक का मन नहीं भरा तो इनके भी डबल रोल कर दिए। ईद पर लगनी थी तो अक्षय का नाम फिरोज़ रख दिया!

आईपीएल के दौर में फुटबॉल का 'मैदान'

क्रिकेट के दीवानों के देश में जब आईपीएल के मैच चल रहे हों, तब सिनेमाघर  में परदे पर फुटबॉल का मैच कराना हिम्मत का काम है। 'मैदान' फिल्म भारतीय फुटबॉल के स्वर्ण काल की कहानी है, लेकिन मैदान बहुत लम्बा हो गया। फुटबॉल के अंतरराष्ट्रीय मैच डेढ़ घंटे के होते हैं लेकिन यह फिल्म उससे दोगुने से भी ज्यादा समय तक चलती है। नतीजा उबासी और जम्हाई ! फिल्म नहीं थकती, दर्शक थक जाता है।

हिप हिप हुर्रे, झुंड, साहेब, द गोल, धन धना धन गोल आदि भी फुटबॉल पर केंद्रित हिंदी फ़िल्में थीं, लेकिन मैदान फुटबॉल के साथ ही एक कोच सैयद अब्दुल रहीम के जीवन की कहानी भी है, वह भी ढीली पटकथा के साथ।  सैयद अब्दुल रहीम ने भारतीय फुटबॉल टीम को 4-2-4 फ़ार्मेशन में खेलने  तैयार किया था। इसका अर्थ आक्रामक खेल और फुटबॉल पर टीम के खिलाड़ियों का नियंत्रण बनाये रखते हुए प्रदर्शन करना होता है।  तीन घंटे से भी लम्बी यह फिल्म देश प्रेम की बात करती है और कई बार दर्शकों को ताली बजाने पर बाध्य कर देती है। फिल्म का अनअपेक्षित अंत दर्शकों की आँखों को भिगो देता है।

आज़ादी के बाद 1952 से 1962 तक भारत के फुटबॉल खिलाड़ी एशियन गेम्स और ओलम्पिक में बिना जूतों के कैसे खेलते और घायल होते रहे, फुटबॉल फेडरेशन की राजनीति कैसी होती थी और गिरोहबाजी में खेल पत्रकार कैसा तांडव करते थे, इसकी झलकियां इस फिल्म में है। छह-सात दशक पुराना कोलकाता दिखाना और पुराना माहौल चित्रित करना बेशक कठिन काम था, इसीलिए फिल्म के बनने और रिलीज होने में करीब पांच साल लग गए।

यह अजय देवगन की बेहतरीन फिल्म है।  वे जुबान के बजाय आँखों से ज्यादा बोलते हैं। मनोज मुंतशिर शुक्ला के गाने भर्ती के हैं।  ए आर रहमान के संगीत की लय फुटबॉल की गति से मैच नहीं पाती। संगीत वह जोश नहीं भर पाया, जो खेल में होना चाहिए।  प्रियामणि ने देवगन की पत्नी की भूमिका स्वाभाविक अंदाज में की है। खेल पत्रकार रॉय चौधरी  की भूमिका में गजराज राव और (तत्कालीन 'मुंबई प्रदेश' के मुख्यमंत्री के रोल में) मोरारजी देसाई बने ज़हीर मिर्ज़ा प्रभावी हैं।  फुटबॉल टीम के खिलाड़ी बने सभी कलाकार बेहद बहुत स्वाभाविक और सधे हुए लगे। किसी ने फाउल नहीं होने दिया। उन्होंने बहुत मेहनत की। निर्देशक अमित रविन्दरनाथ शर्मा और  फिल्म की छायांकन टीम ने एशियन गेम्स में भारतीय फुटबॉल टीम के मैच रोमांच को सफलतापूर्वक उतार दिया। 

मैदान फिल्म लम्बी है, लेकिन है देखनीय !

बड़े मियां छोटे मियां

'सुल्तान' और 'टाइगर जिन्दा है' जैसी एक्शन फ़िल्में बनानेवाले अली अब्बास जफ़र की इस ईद पर आई फिल्म 'बड़े मियां, छोटे मियां' एक एक्शन-कॉमेडी फिल्म है। देशप्रेम की चाशनी और थ्री डी तकनीक वाली इस फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसका अंदाज दर्शक नहीं लगा सकें। अक्षय कुमार और टाइगर श्रॉफ देशप्रेम वाली कई एक्शन फ़िल्में कर चुके हैं। यह भी वैसी ही है। 

फिल्मों  में जैसे कमांडो दिखाए जाते हैं, वैसे ही इस फिल्म में भी हैं। फ़िल्मी कमांडो बहादुर, जांबाज़, एक्शन में माहिर, दिलफेंक और अफसरों के आदेश नहीं मानने वाले होते हैं। उन पर कोर्ट मार्शल की कार्यवाही होती है, लेकिन उनके बिना सेना का काम नहीं चल पाता, इसलिए उन्हें वापस बुला लिया जाता है। वे असंभव काम करते हैं, चाहे वह किसी भी तरह का हो। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्लोनिंग और कई अडवांस सुरक्षा तकनीक का ज्ञान उन्हें जन्मजात होता है। वे डांस में माहिर और गाने-बजाने  में उस्ताद होते हैं। उन्हें गुस्सा जल्दी आता है। वे अक्सर अपने बॉस की बेटी से इश्क करते पाए जाते  हैं।  

बड़े मियां, छोटे मियां में तकनीक हीरो है। मानुषी छिल्लर, सोनाक्षी सिन्हा और अलाया एफ. पार्ट टाइम हीरोइन्स हैं।  मलयालम फिल्मों का सितारा पृथ्वीराज सुकुमारन खलनायक और अक्षय कुमार, टाइगर श्रॉफ, रोनित रॉय आदि फिलर्स हैं। निर्देशक का मन नहीं भरा तो उसने अक्षय, टाइगर और  रोनित के डबल रोल  कर दिये और खलनायक के ट्रिपल रोल ! फिल्मों में आतंकवादी जितने मूर्ख और विलासी दिखाने का रिवाज है, उतने ही मूर्ख आतंकी इसमें भी हैं। केवल एक आतंकी इतना खतरनाक है कि पूरी भारतीय सेनाएं कमजोर पड़ने लगती हैं।

फिल्म का गीत-संगीत भड़भड़कूटा है। बहुत सारे टर्न और ट्विस्ट हैं। दर्शकों को पता होता है कि जीतेगा तो हीरो ही। इसमें भी वही होता है। अमृत चख चुके हीरो, हीरोइन बच जाते हैं।  दुश्मन खाक में मिल जाता है।  और देश बच जाता है।

एक्शन में रुचि हो तो थ्री डी में देख सकते हैं।


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